 | झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई (1828 - 17 जून 1858) मराठा शासित झाँसी (Jhansi) राज्य की रानी थी । वह् सन् १८५७ के भारतीय स्वतन्त्रता सन्ग्राम की नायिका थी । इनका जन्म काशी (वाराणसी) तथा मृत्यु ग्वालियर में हुई । इनके बचपन का नाम मनिकर्णिका था पर प्यार से मनु कहा जाता था । |
|
 | झलकारी बाई (२२ नवंबर १८३० - ४ अप्रैल १८५७) झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की नियमित सेना में, महिला शाखा दुर्गा दल की सेनापति थीं। वे लक्ष्मीबाई की हमशक्ल भी थीं इस कारण शत्रु को धोखा देने के लिए वे रानी के वेश में भी युद्ध करती थीं। अपने अंतिम समय में भी वे रानी के वेश में युद्ध करते हुए वे अंग्रेज़ों के हाथों पकड़ी गयीं और रानी को किले से भाग निकलने का अवसर मिल गया। उन्होंने प्रथम स्वाधीनता संग्राम में झाँसी की रानी के साथ ब्रिटिश सेना के विरुद्ध अद्भुत वीरता से लड़ते हुए ब्रिटिश सेना के कई हमलों को विफल किया था। यदि लक्ष्मीबाई के सेनानायकों में से एक ने उनके साथ विश्वासघात न किया होता तो झाँसी का किला ब्रिटिश सेना के लिए प्राय: अभेद्य था। |
 | विष्णु गुप्त (चाणक्य) :– पन्ना जिला के चणक (नचना) ग्राम के थे। इनको कौटिल्य, विष्णुगुप्त ’चाणक्य’ कहा जाता था। कौटिल्य का अर्थशास्त्र इनका महान ग्रंथ है। वे चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री थे।
|
|
 | मध्यकालीन भारत में विदेशी आतताइयों से सतत संघर्ष करने वालों में छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप और बुंदेल केसरी छत्रसाल के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, परंतु जिन्हें उत्तराधिकार में सत्ता नहीं वरन ‘शत्रु और संघर्ष’ ही विरासत में मिले हों, ऐसे बुंदेल केसरी छत्रसाल ने वस्तुतः अपने पूरे जीवनभर स्वतंत्रता और सृजन के लिए ही सतत संघर्ष किया। शून्य से अपनी यात्रा प्रारंभ कर आकाश-सी ऊंचाई का स्पर्श किया। उन्होंने विस्तृत बुंदेलखंड (bundelkhand) राज्य की गरिमामय स्थापना ही नहीं की थी, वरन साहित्य सृजन कर जीवंत काव्य भी रचे। छत्रसाल ने अपने 82 वर्ष के जीवन और 44 वर्षीय राज्यकाल में 52 युद्ध किये थे। |
|
 | हरदौल ओरछा (orchha) नरेश वीरसिंह देव बुन्देला के पुत्र थे। इनके बड़े भाई जुझार सिंह जब ओरछा (orchha) की गद्दी पर आसीन हुए तो राज्य का सारा काम उनके छोटे भाई हरदौल ही देखा करते थे। वे उस समय के अप्रतिम वीर, सच्चरित्र तथा न्यायपरायण व्यक्ति थे। बुंदेलखंड (bundelkhand) में राजा के छोटे भाई को दीवान कहा जाता है। दीवान हरदौल की इस कीर्ति से जकर किसी चुगलखोर ने राजा जुझार सिंह से शिकायत की कि दीवार हरदौल के रानी से अनुचित सम्बन्ध हैं। राजा को चुगलखोर की यह बात सच प्रतीत हुई।इन्होंने अपनी रानी को आदेश दिया कि वह अपने को निर्दोष प्रमाणित करने के लिए हरदौल को अपने हाथ से विषाक्त भोजन का थाल प्रस्तुत करे। |
 | क्रिकेट में जो स्थान डॉन ब्रैडमैन, फ़ुटबाल में पेले और टेनिस में रॉड लेवर का है, हॉकी में वही स्थान ध्यानचंद का है !हॉकी के इस जादूगर का जन्म आज से 100 वर्ष पहले 29 अगस्त, 1905 को इलाहाबाद में हुआ था लेकिन वो बड़े हुए झाँसी में जहाँ उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में हवलदार थे! |
 | डॉ. हरिसिंह गौर, (२६ नवंबर १८७० - २५ दिसम्बर, १९४९) सागर विश्वविद्यालय के संस्थापक, शिक्षाशास्त्री, ख्यति प्राप्त विधिवेत्ता, न्यायविद् , समाज सुधारक, साहित्यकार (कवि, उपन्यासकार) तथा महान दानी एवं देशभक्त थे। वह बीसवीं शताब्दी के सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मनीषियों में से थे। वे दिल्ली विश्वविद्यालय तथा नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे। वेभारतीय संविधान सभा के उपसभापति, साइमन कमीशन के सदस्य तथा रायल सोसायटी फार लिटरेचर के फेल्लो भी रहे थे। |
 | असगरीबाई एक प्रसिद्ध भारतीय ध्रुपद गायिका थी, उनको पद्मश्री, तानसेन सम्मान, अकादमी सम्मान और शिखर सम्मान भी दिए गए थे उनको नारी शक्ति सम्मान से सम्मानित किया गया और भी कई पुरस्कार असगरीबाई को दिए गए ! असगरीबाई को न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पुरे भारत में ध्रुपद गायिका के रूप में जाना जाता है!और असगरीबाई ध्रुपद गायिका के रूप में उसकी शैली दशकों के लिए प्रतिभा के साथ न केवल मध्य प्रदेश में बल्कि देश भर में अद्वितीय थी ! |
|
|